गुनगुनाते हुए वह बस में घुसा, एक सरसरी निगाह सवारियों पर डाली। आँखों ने जैसे ही उस लड़की के चित्र मस्तिक को भेजे, उसका दिल गाने लगा, “तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त,तू---” अगले ही क्षण वह उस लड़की के बगल की सीट पर इस तरह सिकुड़ा बैठा था मानो उसे लड़की में कोई दिलचस्पी न हो। उसके चेहरे को देखकर कोई भी दावे के साथ कह सकता था कि वह आसपास से बेखबर किसी घरेलू समस्या के ताने-बाने सुलझाने में लगा है, जबकि वास्तव में वह मस्त-मस्त की धुन के साथ लगातार लड़की की ओर तैर रहा था।
लड़के के इस अभियान से बेखबर लड़की का सिर सामने की सीट से टिका हुआ था, आँखें बंद थीं ।
बस ने गति पकड़ ली थी। ज्यातर यात्री ऊँघ रहे थे। किसी बड़े गड्ढे की वजह से बस को जबदस्त धक्का लगा। मौके का फायदा उठाते हुए उसने अपना शरीर लड़की से सटा दिया। लड़की की तरफ से कोई प्रतिरोध नहीं हुआ । उसे हाल ही में देखी गई फिल्म के वे सीन याद आए, जिनसे हीरो और हीरोइन बस में इसी तरह एक-दूसरे पर गिरते-पड़ते प्यार करने लगते हैं। दिल की गहराइयों में वह लड़की के साथ थिरकने लगा, “खुल्लम खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों-- ”
लड़की बार-बार अपनी बैठक बदल रही थी, लंबी-लंबी साँसें ले रही थी, सामने की सीट से सिर टिकाए अजीब तरह से ऊपर से नीचे हो रही थी।
दो-तीन बार उसके मुँह से दबी-दबी अस्पष्ट सी आवाज़ें भी निकली थीं । यह देखकर उसे लगा,कि शायद लड़की को उसकी ये हरकतें अच्छी लग रही हैं।
लेकिन तभी ‘बस सिकनेस’ से पस्त लड़की ने जल्दी से खिड़की का शीशा खोला और सिर बाहर निकालकर उल्टियाँ करने लगी ।
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*1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा*
*अँधेरे में टटोलती हूँ*
*बाट जोहती आँखें*
*मुट्ठी में दबाए*
*शगुन के रुपये*
*सिर पर धरे हाथों का*
*कोमल अहसास*
*सुबह ...
1 day ago
1 comment:
लाजवाब रचना है। अंत ने काफी अच्छा असर डाला है इस रचना पर।
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