Wednesday, July 31, 2013

अंतत:


सुकेश साहनी

‘‘आज दफ्तर नहीं जाना हैं क्या?’’
‘‘तुम्हें दफ्तर की पड़ी है...’’ श्यामलाल झुँझलाकर पत्नी से बोले, ‘‘दो महीने बाद जब मैं रिटायर कर दिया जाऊँगा, तब तुम्हें आटेदाल का भाव मालूम पड़ेगा। आज मैं ऑफिस न जाकर सेवामुक्ति के विरुद्ध अपने प्रत्यावेदन को अंतिम रूप दूँगा...’’
‘‘क्यों नाहक अपना खून जलाते हो,..’’ पत्नी ने कहा, ‘‘अकेले तुम्हीं तो रिटायर होने नहीं जा रहे।’’
‘‘जब तुम्हारे दिमाग में भूसा भरा है तो क्यों हर मामले में अपनी टाँग अड़ाती हो?’’ श्यामलाल ने कुढ़कर जलती हुई आँखों से पत्नी को घूरा, ‘‘सारे कायदेकानून हमारे लिए ही तो बने हैं। अवतार सिंह को ही ले लो, उसने शासन में अपनी ऐसी गोट फिट कर रखी है कि साठ साल की सेवा के बाद एकएक साल के दो एक्सटेंशन ले चुका है। इन राजनीतिज्ञों को देख लो...इनके सेवा काल में उम्र कहीं आड़े नहीं आती। तुम्हें मेरी क्षमता का अभी कोई अंदाजा नहीं है, मैं आज भी तीनचार आदमियों का काम अकेले कर सकता हूं। आजकल के एम.ए. पास छोकरे मेरे आगे पानी भरते हैं श्यामलाल जी यह बता दीजिए, यह एप्लीकेशन जाँच दीजिए...इस पत्र का जवाब बनवा दीजिए...। और मुझे ही रिटायर किया जा रहा है। मैं कल हर हालत में निदेशक को अपना प्रत्यावेदन भेज दूँगा।’’ थोड़ा रुककर बोले, ‘‘अच्छाखासा लिखने का मूड था, तुमने चौपट करके रख दिया। थैला लाओ,.....पहले बाज़ार से सामान ले आता हूँ।’’
इस बार पत्नी कुछ नहीं बोली। उसने चुपचाप थैला उन्हें थमा दिया। रोज़गार कार्यालय के सामने से लौटते हुए श्यामलाल ठिठक गए। उन्होंने हैरानी से देखा...परेशानसे इधरउधर घूमते पच्चीसतीस वर्षीय बूढ़े युवकयुवतियाँ....चश्मों के मोटेमोटे शीशों के पीछे सोचती हुई उदास आँखें...न जाने कितनी चलतीफिरती लाशें। उन बेरोज़गार युवकयुवतियों की भीड़ को एकटक देखते हुए श्यामलाल गहरी सोच में डूब गए।
सीटी की आवाज़ से श्यामलाल की पत्नी चौंक पड़ी। इस तरह की सीटी जवानी के दिनों में श्यामलाल बजाया करते थे। उसे लगा तीस साल पहले वाले जवान श्यामलाल ने घर में प्रवेश किया है। उन्होंने सामान का थैला पत्नी को दिया और मुस्कराकर बोले, ‘‘एक प्याला गर्मगर्म चाय तो पिलाओ’’ -कहकर वह आरामकुर्सी पर पसर गए। अगले ही क्षण वह अपने विदाई समारोह की कल्पनाओं में खो गए थे।
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