सुकेश साहनी
आँगन में ट्राइसिकिल चलाते हुए बच्चा ऊँची आवाज में गा रहा था, ‘‘जुम्मे के जुम्मे घर आया करो, हम तुम्हारे दिल में रहते हैं.....आकर चुम्मा दे जाया करो....
साइकिल के पीछे तालियां पीटते हुए दौड़ रही उसकी बहन भी बोले जा रही थी, ‘‘जुम्मा–जुम्मा.....चुम्मा–चुम्मा!’’
ये सुनकर रसोई में काम कर रही बच्चों की माँ का खून खौल उठा, वह अपना आपा खो बैठी, दनदनाते हुए बाहर आई और चिमटे से दोनों बच्चों को ताबड़तोड़ पीटने लगी।
इस अप्रत्याशित मार से बौखलाकर बच्चे ‘पापा...पापा’ चिल्लाने लगे, अगले ही क्षण फूट–फूटकर रोने लगे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि उन्हें किस बात की सजा दी जा रही है।
चीख–पुकार सुन बाथरूम से दौड़े आए बच्चों के पिता ने बीच–बचाव करते हुए पत्नी को झिड़का, ‘‘पागल हुई हो क्या? ऐसे मारता है कोई बच्चों को! आखिर हुआ क्या है?’’
‘‘हुआ क्या है? हा से निकलते जा रहे हैं दोनों! अभी सुना नहीं...कैसे गंदे–गंदे गाने गा रहे थे....मेरी तो नाक ही कट जाती है सबके सामने!....इन्हें मारते हुए मेरा दिल नहीं दुखता क्या!!’’ कहते हुए पत्नी सिसकने लगी।
पति–पत्नी ने इस मसले पर गंभीरता से विचार किया, कुछ नियम–कानून बनाए गए और उन पर उसी दिन से सख्ती से अमल किया जाने लगा। सबसे पहले टी.वी. का केबिल कनेक्शन कटवा दिया गया। दूरदर्शन के शिक्षाप्रद कार्यक्रम ही बच्चों को देखने दिए जाते, यहां भी कार्यक्रम के बीच–बीच दिखाए जाने वाले विज्ञापन समस्या बने रहते, जिनसे रिमोट कंट्रोल के माध्यम से निबटा जाता। जब किसी फिल्म की बहुत तारीफ सुनी जाती,बच्चे देखने की जिद करने लगते तो वे दोनों सिनेमा हाल जाकर पहले खुद फिल्म देखते और साफ–सुथरी होने पर ही बच्चों को दिखाने ले जाते। किसी समारोह के अवसर पर बजने वाले गानों को लेकर पड़ोसियों से भी अक्सर उनकी झाँय–झाँय हो जाती थी। कुल मिलाकर बच्चों के हित में जितनी तरह की नाकेबंदी वे कर सकते , कर रहे थे। उन्हें लगने लगा था कि इस कड़ाई से बच्चे पूरी तरह सुधर गए हैं।
छुट्टी का दिन था, बच्चे होमवर्क कर रहे थे, पति अखबार पढ़ रहा था और पत्नी कहीं बैठी सब्जी काट रही थी।
तभी अप्रत्याशित बात हुई....
पत्नी की समझ में नहीं आया कि पति और बच्चे आँखें फाड़े उसे क्यों देखे जा रहे हैं...असंभव!....ऐसा कैसे हो सकता है? उसने खुद को चुटकी काटकर देखा...सच्चाई उसे मुँह चिढ़ा रही थी....उसने चाहा धरती फटे और वह उसमें समा जाए।
....दरअसल सब्जी काटते हुए न जाने कब....कैसे वह गुनगुनाने लगी थी, ‘‘लड़का कमाल का अँखियों से गोली मारे !.....’’
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