मेरी पसंद की लघुकथा- “खेल(रेनड्रॉप के चैटरूम से)”
सुभाष नीरव
हिंदी के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं यथा-पंजाबी, उर्दू, मराठी, गुजराती, बंगला, तेलुगू तथा विश्व की अनेक भाषाओं में लिखी गई नई-पुरानी कई लघुकथाएँ मुझे पसंद हैं। लेकिन, इधर समकालीन हिंदी लघुकथाओं में सुकेश साहनी की लघुकथा “खेल(रेनड्रॉप के चैटरूम से)” जो हिंदी की मासिक कथा पत्रिका “कथादेश” के विशेषांक “ 10 वर्ष- एक चयन” में प्रकाशित हुई थी, मेरी मनपसंद लघुकथा है।
दरअसल, लघुकथा को लेकर मेरी जो अपेक्षाएँ रही हैं, खासकर समकालीन लघुकथा को लेकर, “खेल” लघुकथा उन सभी अपेक्षाओं को पूरा करती प्रतीत होती है। यह लघुकथा वार्तालाप शैली में लिखी गई है जो कि नई शैली नहीं है। इस शैली में पहले भी लघुकथाएँ लिखी जाती रही हैं और अभी भी लिखी जा रही हैं। लेकिन, नया है इसका कंटेंट्स, इसकी प्रस्तुति, इसकी भाषा। बदलते समय के यथार्थ को तो यह लघुकथा कम समय और कम शब्दों में व्यंजनात्मक ढंग से रखती ही है, यह बदले हुए समय द्वारा आधुनिक समय में मुहैया कराये गए नये संचार माध्यमों और उनमें प्रयुक्त भाषा का बखूबी इस्तेमाल भी करती है। आज नेट की दुनिया ने आपसी वार्तालाप या बातचीत की जो नई सुविधा ‘चैट’ के माध्यम से हमें उपलब्ध कराई है, लेखक उसका बेहद कुशलता से प्रयोग इस लघुकथा में करता है।
लघुकथा पर प्राय: यह आरोप लगाया जाता रहा है कि इस में नये विषय, नई बात दिखाई नहीं देती, कि लघुकथा वर्तमान भूमंडलीकरण और बाजारवाद के दौर में जटिल विषयों को अभिव्यक्ति देने में असमर्थ है, कि बार-बार इसमें वही घिसे-पिटे विषय दोहराये जा रहे हैं और उन्हें परम्परागत भाषा-शैली में पाठकों के सम्मुख परोसा जा रहा है, कि लघुकथा अपने एक सीमित घेरे से बाहर नहीं निकल पा रही है। और यह भी कि जटिल और गंभीर विषयों को लघुकथा में अभिव्यक्ति देने में आड़े आता है– इसका आकार। लेकिन, मैं ऐसा नहीं मानता। वर्तमान समय में लघुकथा अपने लम्बे सफ़र के बाद आज जहाँ खड़ी है, वहाँ ,पहुँचकर इसने इन सभी चुनौतियों को स्वीकारा है और नये समय की नयी संवेदनाओं को अभिव्यक्ति देने में इसने अपने आप को सक्षम भी किया है। यह हमारी समयगत सच्चाइयों से जुड़े गंभीर से गंभीर, जटिल से जटिल विषय पर अपनी शक्ति का परिचय दे रही है। “खेल” लघुकथा का उदाहरण मेरी इस बात की पुष्टि के लिए काफी है।
इस लघुकथा में ‘चैट’ के विकसित हुए नए संवाद-माध्यम से एक लड़की और लड़के के मध्य हुई छोटी-सी वार्तालाप को आधार बनाकर अपने समय के सच को रेखांकित करने का सफल प्रयास किया गया है। इसमें दिल्ली की (निरंकुश) सत्ता से लेकर गुजरात के दंगों तक की बात जिस मारक फैंटेसी में बातचीत के माध्यम से कही गई है, वह इस लघुकथा की शक्ति को और बढ़ा देती है। लड़की गुजरात से है और लड़का दिल्ली से। लड़की का परिचय पाने के बाद जब लड़का लड़की से कहता है–‘आय वुड लाइक टू प्ले विद यू’ तो प्रत्युत्तर में लड़की ठहाका लगाते हुए उत्तर देती है–‘देहली इज आलरेडी प्लेइंग विद गुजरात।’
यहाँ लेखक का रचना-कौशल भी देखते बनता है और यह बात भी स्पष्ट होती है कि लेखक के अपने समय और समाज के प्रति क्या सरोकार हैं और वह अपने लेखन, खासकर लघुकथा लेखन के जरिये उन सरोकारों को कैसे रेखांकित करता(करना चाहता) है। इस लघुकथा में पुरुष का लोलुप और भोगवादी चरित्र भी बखूबी उभर कर सामने आता है जब वह लड़की से कहता है– ‘जस्ट आय वांट टू सी यू न्यूड’ और अंत में जब वह कहता है ‘यू आर बोरिंग, स्पॉयलिंग माय टाइम...एनअदर गर्ल विद वेब कैमरा इज आन लाइन फार मी... बाइ! बाई फार एवर !!’
एक श्रेष्ठ लघुकथा में जिन आवश्यक तत्वों की दरकार आज की जाती है–मसलन वह आकार में बड़ी न हो, कम पात्र हों, समय के एक ही कालखंड को समाहित किए हो, अनावश्यक डिटेल्स न हों, शीर्षक रचना को पुष्ट और पुख्ता करता हो, उसकी गति अपने प्रारंभ-बिन्दु से अन्तिम बिन्दु(चरम बिन्दु) की ओर हो, विषय को लेकर किसी प्रकार का उलझाव न हों, और अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर अपनी मारक और असरदार शक्ति का प्रदर्शन करे, वे सभी तत्व मुझे इस लघुकथा में क्रमश: दिखाई देते हैं।
“खेल” में वार्तालाप-शैली होने के कारण इसके संवादों को बेहद चुस्त-दुरुस्त, सटीक और समयानुरूप रखा गया है और उन्हें चुटीला और व्यंजनात्मक बनाने की भरपूर कोशिश की गई है। ये संवाद ‘टू दि प्वाइंट’ बात कहते हैं और अनावश्यक डिटेल्स से पूरी तरह बचते हैं। वैसे भी चैट की आधुनिक संवाद-प्रविधि में अनावश्यक शब्द नहीं होते हैं और शब्दों में मितव्यतता बरती जाती है। सुकेश साहनी ने इस आधुनिक संवाद विधि का अपनी इस लघुकथा में बेहद सफल प्रयोग किया है।
और अंत में इसके शीर्षक पर भी बात करना प्रासंगिक और बेहद आवश्यक है। लघुकथाओं में अधिकांशत: शीर्षक अत्यंत चलताऊ ढंग से रख दिए जाते हैं जो एक अच्छी लघुकथा को भी प्रभावहीन कर देते हैं। इस लघुकथा में दर्शाया गया खेल सत्ता-नगरी में सैक्यूलरवाद का मुखौटा लगाये लड़के का साम्प्रदायिक दंगे की शिकार हुई गुजरात की लड़की से चैट के माध्यम से खेले जाने वाले खेल तक ही सीमित नहीं है, यह “खेल” शीर्षक उन सभी खेले जा रहे खेलों को भी ध्वनित करता है जो मानवता के विरुद्ध आज खुलेआम खेले जा रहे हैं। उन छद्म संवेदनाओं के खेल की ओर भी संकेत करता है जिसे हम नित्य अपने आसपास की दुनिया में देख-सह रहे हैं।
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मेरी पसन्द की लघुकथा
खेल
सुकेश साहनी
(रेनड्रॉप के चैट रूम से)
मायसेल्फ : हैलो?
रेनड्रॉप : हाय!
मायसेल्फ : ए एस एल प्लीज?
रेनड्रॉप : 22, फीमेल फ़्राम गुजरात एण्ड यू?
मायसेल्फ : मेल फ़्राम देहली।
रेनड्रॉप : ओके....
मायसेल्फ : आय वुड लाइक टू प्ले विद यू।
रेनड्रॉप : लाफ आन लाउड (ठहाका!)
मायसेल्फ : क्या हुआ?
रेनड्रॉप :देहली इज़ आलरेडी प्लेइंग विथ गुजरात
मायसेल्फ :गुड सेंस आफ़ ह्यूमर !
रेनड्रॉप : नो, आय एम सीरियस।
मायसेल्फ : टेक इट ईजी! गुजरात अब बिल्कुल ‘फिट है। कम आन, यू विल एन्जॉय माय कम्पनी।
रेनड्रॉप : ओके......वाट यू हैव इन योअर माइंड?
मायसेल्फ : तुम्हारे पास वेब कैमरा है?
रेनड्रॉप : हां और तुम्हारे पास?
मायसेल्फ : चैटिंग फ़्राम अ रिजॉ़र्ट, नो कैम (रा) नो पिक (चर) हियर।
रेनड्रॉप : ओके....
मायसेल्फ : जस्ट वांट टू सी यू न्यूड।
रेनड्रॉप : ओके ..बट आय अलर्ट यू–यू आर नाट गोइंग टू एन्जॉय माय न्यूडिटी।
मायसेल्फ : नो, आय कैन बेट...यू आर हॉट।
रेनड्रॉप : माय कैमरा इज आन नाउ, आर यू वाचिंग मी?
मायसेल्फ : यस, बट यू आर नाट न्यूड........यू आर स्टिल वेअरिंग समथिंग।
रेनड्रॉप : इस बुरे मौसम में दिल्ली से गुजरात को साफ–साफ देखना थोड़ा मुश्किल है।
मायसेल्फ : फिर वही मजाक!
रेनड्रॉप : व्हयू माय क्लोज अप.....आय एम नाट वेअरिंग एनीथिंग।
मायसेल्फ : तुम्हारे जिस्म पर ये निशान?
रेनड्रॉप : दंगाइयों ने हमारे साथ सामूहिक बलात्कार किया, हमारे जिस्मों को बेरहमी से रौंदा गया, ये उन्हीं जख्मों के निशान हैं।
मायसेल्फ : ओह!.....तब तो तुमने उन्हें बहुत करीब से देखा है, वे कौन थे?
रेनड्रॉप : पहचानना मुश्किल था, उन्होंने एक ही सांचे में ढले मुखौटे पहन रखे थे।
मायसेल्फ : टेल मी एवरीथिंग अबॉउट दिस, हम इस ‘स्टोरी को अपनी पार्टी की वेब साइट के मुख पृष्ठ पर देंगे।
रेनड्रॉप : वाट इज द नेम आफ योअर वेब साइट?
मायसेल्फ : सेकुलर 2002 डॉट कॉम।
रेनड्रॉप : ओके......आय एम रेडि फॉर नेट मीटिंग।
मायसेल्फ : लेकिन आगे बढ़ने से पहले–जस्ट फॉर फॉरमेलिटि–हमारा यह जानना जरूरी है कि तुम किस सम्प्रदाय से हो।
रेनड्रॉप : सॉरी, डियर! रेनड्रॉप (वर्षा की बूँद) इज फॉर आल। हमारी कोई बिरादरी नहीं होती।
मायसेल्फ : यू आर बोरिंग, स्पॉइलिंग माय टाइम.......एनअदर गर्ल विद वेब कैमरा इज आन लाइन फार मी। बाइ! बाइ फॉर एवर!!
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1440
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*1-दूर –कहीं दूर/ शशि पाधा*
*अँधेरे में टटोलती हूँ*
*बाट जोहती आँखें*
*मुट्ठी में दबाए*
*शगुन के रुपये*
*सिर पर धरे हाथों का*
*कोमल अहसास*
*सुबह ...
3 days ago
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